यत्नाचा लोक भाग्याचा | यत्नेंवीण दरिद्रता |
|
उमजला लोक तो धाला | उमजेना तो हपापिला |
| १ ||
हिंडता शाहाणे होते | बोलता बोल सीकते |
वाचिता लिहिता येते | तेणें ते मान्य होतसे |
|२||
घरीचं बैसतां खोटे | ब्राह्मणू हिंडतां बरा |
आळसी घातघेणा तो| कष्टला ह्मणिजे बरा |
|३||
भुकाळू ह्मणिजे खोटा | धीराचा पाहिजे नरू |
तार्किक असावा प्राणी | सावधान चहूकडे |
|४||
प्रसंग वर्ततां आले | यथातथ्यची सूचले |
मनुष्य राखिले राजी| तो प्राणी शाहाणा बरा |
| ५ ||
समयी धीर सांडीना | यत्नी यत्न बरा करी |
हिंडता पारखी लोकां | कार्यकर्ता जिवी धरी |
|६||
मैत्रिकीही विटो नेदी | सर्वांसी सारिखा दिसे |
विचार जाणतो मोठा | दक्ष तो जाणता जनीं |
|७||
उदंड वोळखी होतां | उदंड भाग्य होतसे |
उदंड कळहो होतां | उदंड लाथ खातसे |
|८||
विचारे गोड बोलावे | बहुतां मान्यसे बरे |
भांडतां पुरवेना की| मैत्रिकी करिता बरे |
| ९ ||
बोलावे उसिणे घ्यावे | वर्ततां उसिणे निघे |
कुटितां कुटिती लोक| वोढतां वोढती जनी |
|१०||
करावे तेची पावावे| हे आले आपणाकडे |
आपले आपणापासी| जनासी काय बोल हा |
|११||
आपला मित्र का शत्रु | जैसे करी तैसे घडे |
दिसते गोष्टी ते ऐसी | पल्लवी पडिली पहा |
|१२||
झाडिल्यां सांडिता येना | झडेना गुण आपुला |
आपणा विसरावेना | घडीघडी क्षणक्षणा |
| १३ ||
आपली चुकी जाणावी| सांडावी ते येकीकडे |
विवेकें साजिरा जाला | येर उदंड मीळती |
| १४ ||
वेषानें कार्य साधेना | विवेकें कार्य साधतें |
विवेकी मानिती ज्याला | धन्य तो ब्राह्मणू जनीं |
| ५||
पराचें कार्य कर्ता जो| त्याचें कार्य कसें नव्हे |
तांतडी तांतडी धांवे | बरेपण मनोगते |
|१६||
पराचें कार्य कर्ता जो| उभाउभी खडाखडी |
कळलें पाहिजे सर्वे | लिहितां वाचितां कळे |
| १७ ||
भल्याची संगती व्हावी | स्नानसंध्या पवित्रता |
परोपकारणी काया | नित्यानित्य विचारणा |
| १८ ||
स्नान संध्या टिळे माळा | उदास तापसी फिरे |
उत्तमू तो नये वाट्या | जेथें तेथें विराजतो |
| १९ ||
येके स्थळ स्थिरावेना | नित्य नूतन साजिरा |
कीर्ति ते दिगंती धांवे | नेमस्त राहातां जनी |
| २० ||
श्लाघ्य दुर्लभ तें जाणें | कोड कौतुक होतसे |
विख्यात होतसे योगी| धुंडितां सांपडों नये |
| २१ ||
येकांत सांपडे मोठा | बुद्धियोग ठाई पडे |
इहलोक परलोकीं | बुद्धियोगची पाहिजे |
| २२ ||
बुद्धियोगें देवयोगें | कर्मयोगें चुके जनीं |
वियोगेंवीण जो योग| त्या योगें देव साधला |
| २३ ||
कृत्याकृत्य जिणें जालें | देव सांपडतां जनीं |
धन्य तो कुळ तो जन्म | ज्ञानें सार्थक जाहला |
| २४ ||