नमूं गणनाथ करील सनाथ |
जरी वरदान तरी जनमान || १ ||
रम्याक्षी रम्यवदना |
रम्यरूपा मनोरमा |
रम्य वाणी कळाविद्या |
रम्य नागर शारदा ||२||
श्रेष्ठता प्रविष्ट पष्ट |
पष्टता वरिष्ठ नेष्ठ ||
जेष्ठ तो कनिष्ठ कष्ट |
सुष्ट दुष्ट नेदरवे || ३||
भव्य आवीत सव्य दावीत हव्य लावीत संशया |
अंगसंगीत हे प्रसंगीत सर्व संगीत हो तया ||४||
नानाकारी चित्तविकारी |
मिथ्यावारी काळ निवारी |
माया सारी मृत्यविदारी |
वेदाधारी भेदपहारी ||५||
येकनेक वीतरेक पाहे |
संग वेंग सहसा न साहे |
घातमातविरहित साधु |
साधकां विलसे निजबोयु ||६||
निज संत संतंत अनंत तो |
निगमागम सुगम भावितो |
निजरूप निरंजन दावितो |
विजनीं विलयालय बनवितो ||७||
सदा निजगूज मनीं गमनीं |
कदा भवसीण नसे वदनीं |
जनी सुखसार सुखाळय तो |
हरीजन पार उतारवितो ||८||
आनंदरूपी अनुपम्यरूपी |
सत्यस्वरूपी निगमांतरूपी |
त्रैलोक्यवासी बहुधा विळासी |
अत्यंत त्रासी कुमतांतरासी || ९ ||
मत्तमत्तें स्फूर्तिवंतें अनंते |
अंतेंवतें सर्व तंतें निवांतें |
वारीवारी जन्मवारी निवारी |
ज्ञानेंसारी भक्त देवाधिकारी ||१०||
पीत पीतांबर सुंदर शाम |
नुरवी दुरितें पुरवी काम|
पाळी हरिजन मनाविश्राम|
सत्यनिरंजन तारक राम ||११||
मना आकलेना जनाला कळेना |
मती वीवळेना गती नीवळेना |
सदोदित आत्मा रुळेना रुळेना ||१२||
उडगणें गणणें कवण्या परी |
अनुरणें धरणें न घडे करीं |
अगणिता गणिता कवणु असे |
जरिदयापुरती तरि वीलसे ||१३||
अवनीपवनीं जिवनींभुवनीं |
रघुराज दिसे दहनींगहनीं |
अतळीवितळीं सुतळीं भुतळीं |
खुराज दिसे सकळींअकळीं ||१४||
जना मन धरा धरा धरवरा |
वरा परतरा तराभव हरा |
हरांतर बरा बरा दृढ करा |
कदा अवसरा सदा मग खरा ||१५||
थकीत मनांतर अंतरवासी |
सरतचराचरगुज निगमासी |
सकळ सुरासर राजविलासी |
भ्रमति सदा चुकले गुणरासी ||१६||
करीकरीत करी न करी न करी |
धरीधरीत घरी न धरी न धरी |
सदा सतंत वदे न वदे न वदे |
पदा शरीर पढें न पदें न पदें ||१७||
मिथ्या विचार निजसार विचारणा हे |
आनंत संत मुळतंत शोधुनी पाहे |
विश्वासलें मन भलें गमलें जयाला |
चिद्रुप तें उमगलें चुकलें तयाला ||१८||
श्रीराम राम हरहृदयराम राम |
श्रीरामराम करुणालय राम राम |
श्रीराम राममुनिमानसराम राम |
श्रीराम राम जगज्जंन्त्रक राम राम ||१९||
मृदपणगगनाचें तुळितां तुळवेना |
गगन चळन आहे देव कांहीं चलेना |
आचळ विमळ लीला वर्णिता वर्णवेना |
निगम सिवत पोटी पार कांही कळेना ||२०||
सारसार हा विचार पैलपार पाविजे |
थार थर थोर थार निर्विकार भाविजे |
अंतवंत हे असंत सर्व संत वोळखा |
हावभाव हा स्वभाव येक देवतो सखा ||२१||