वंदु विश्वात्मा हेरंब | जेथुनिया सर्वारंभ |
ज्याचा संकल्प स्वयंभ | उन्मेष कोंभ फुटती || १ ||
आता स्मरा ते शारदे | सर्व शब्द विशारदे |
वर्णोच्चार विदग्धे | वाग्वरदे वैखरी || २||
तुजस्तवितो सद्गुरु सभा | हे तुं क्षमा करी पूर्णकामा |
कां जे अचिंत्यासी चित्तधर्मा | चिंतानुक्रमा आणि तसे || ३ ||
सद्भावें स्तवितो सज्जन | जे भूतभविष्यवर्तमान |
तया सर्वांसी अभिवंदन | ज्यासि मनन अखंड ||४||
कृतनिर्वाह नामे ग्रंथ | कोणे दृष्टीने बोलतो अर्थ |
याचे हृदयीचा कल्पितार्थ | कृतबुधि येथार्थ जाणता ||५||
तस्करासी कळे चौर्यचेष्टा | कामाकर कळे निग्रह श्रेष्ठा |
तैसें अध्यात्म कळे अंतरनिष्ठा | स्वयेंही असे दृष्टा म्हणउनि ||६||
परदेशीचे मुक्त केणे | कौतुर्के पाहिजे सर्वजनें |
परी पूर्वसंचित जया तेणें | तत्काळ घेणें अनुभविजे || ७॥
तरी अत्यंत जो विषयासक्त | तो तंव ये श्रवणीं अयुक्त |
काजे विषय तोचि आता येथ | असे उछेदिजेत साक्षेपे || ८ ||
आइकता कल्किचे आख्यानें | म्लेंछ नुपजे समाधाने |
का श्रुतीचे क्षय वचनें | देत असमाधान बोत्थासि || ९ ||
त्या आसक्ताचे लक्षण | मज प्रपंचेसि कारणे |
दुखीतना कां सज्जना | मी मनिन धरि तेव्हां कि || १० ||
अहो दिव्य आचार साहस्त्री | तप करोनिया ऋषेश्वरीं |
अतिंद्रिय आर्थवंदोदरी | होते ते बाहेरी प्रगट केले || ११||
जैसे आकल्पवरी नरनारायण | जे जनाचे स्वस्थतेकारण |
तैसेच मुनिजनहि कृपाळुपणे | परमार्थ प्रकरण प्रगट करणे ||१२||
जेथिचा पदाचा अर्थ |तत्काळ करितसे कृतार्थ |
ज्यासि शंकरही वरी आसक्त |तेव्हा भवभक्त अव्हेरी || १३ ||
हतायु रोगियासि मात्रुका | जन्ही निदानि चि हो कां |
पाचनि पडे ये पाका | आई के तें फिका तैसा हा || १४ ||
म्हणोनिया येथे हे अयोग्ये | आतां सांगिजेति जे योग्ये |
ज्यासि भक्तिज्ञान वैराग्यें | उदित भाग्य परमार्थि || १५ ||
ज्यासि श्रवणाचा आदर | तैसाच मननाचाहि भर |
भगवत्कथा अव्हेरे | जितां शरीरें न करिती || १६ ||
आवड तयाचिया गोष्टी | ऐकावया आदरेपोटि |
वक्ता चतुरमुर्ख दृष्टि | न दिसे सृष्टि स्वानंदेसि || १७ | |
स्वयें जाणती उणे खूण | निउन ते करिती संपूर्ण |
त्याचे वंदुनिया चरण | आत्मानुसंधान बोलिजे || १८ ||
स्वस्तिश्री कृतनिर्वाह रामिरामदासकृत मंगलाचरणनाम प्रथम प्रकरण समाप्त ||