ब्रह्म सकळाहून विशेष | तयास म्हणती स्वयंप्रकाश |
|तरी तो कैसा आहे प्रकाशामज निरोपावा || १ ||
येक म्हणती स्वयंजोती |येक कोटी सूर्याचा प्रकाश म्हणती |
येक देखणी दाखविती | लखलखाटे ||२||
मुख्य प्रकाशसूर्याचा | दुसरा प्रकाश चंद्राचा |
तिसरा प्रकाश नक्षत्राचा | काहीसा ||३||
येक प्रकाश तो वन्हीचा |दीप दीपिका चंद्रज्योतीचा |
येक तो विद्युल्लताचा | क्षणभंगुर ||४||
मोंचल्या चुडे उजळती | काकडे आकाशदीप लाविती |
नाना वन्हीचा प्रकाश किती | म्हणोनि सांगावा ||५||
नाना रत्नांचा प्रकाश |पाचमणी हिरे विशेष |
यामध्ये ब्रह्माचा प्रकाश|दिसत नाही ||६||
ऐसे प्रकाशाचे जिनस | पृथ्वीमध्यें बहुवस |
कित्येक देह स्वयंप्रकाश | नाना जिनसी ||७||
उदंड प्रकाश दिसतो ऐसा | त्यांत ब्रह्माचा प्रकाश कैसा |
श्रोतयाने प्रश्न ऐसा |निर्माण केला ||८||
याचे ऐसे प्रती वचन | वक्ता म्हणे सावधान |
ब्रह्म जे कां सनातन | तेथें प्रकाश नाही || ९ ||
बहुगुणी अंतरात्मा | अवघा त्याचा प्रकाश महिमा |
तया प्रकाशांस उपमा | दुसरी नाही || १० ||
बाह्य प्रकाश पदार्थाचा | अंतर्प्रकाश अंतरात्म्याचा |
ऐसा पदार्थ दुसरा कैचा | माहाश्रेष्ठ || ११ ||
अंतरी जें जें कळत जातें | त्यास प्रकाश ऐसें म्हणिजे ते |
उजेडासारिखे वाटतें | परी तें नव्हे || १२ ||
उजेडास म्हणावें पदार्थ प्रकाश | अंतरात्म्याचा ज्ञानप्रकाश |
दोहीमध्ये कोण विशेष | मनास आणावे || १३ ||
अंधार अज्ञान उजेड ज्ञान | ऐसें आहे परिछीन |
आत्मप्रकाशे समाधान | बहुतांचें होतें || १४ ||
नानाप्रकाश दृष्टीस दिसे | आत्मप्रकाश मनास भासे |
आत्म्याचा अंश मानस असे | म्हणोनिया || १५ ||
अंतरी होत ज्ञानस्फूर्ती | तेथे दिसत नाही जोती |
परंतु यास जगज्जोती | म्हणिजे ते || १६ ||
अंतरी आहे प्रकाश | तेणेचि दिसती पदार्थ प्रकाश |
नेत्री भरोन आत्मअंश | सकळ पाहे ||१७||
अंतरी नस्तां जगज्जोती | प्रकाश कैसे पाहाण्या येती |
या कारणें आत्मस्थिती | थोर आहे || १८ ||
ज्ञानाचें होतें विज्ञान | आत्मज्योती विझेजाण |
ते आत्मजोतीविण निर्माण | सकळास होते || १९ | |
पदार्थ दृष्टीनें पाहाणें | आत्मयाची उदंड लक्षणें |
ज्ञानेंद्रिये करूनि पाहाणे | सकळ काही ||२०||
दृष्टीनें शब्द दिसेना | स्पर्श तो कळेना |
स्वाद तोही अनुमानेना | आणि गंध || २१ ||
आत्मा दृष्टीने पाहातो | आत्मा श्रवणें लक्षीतो |
ज्ञानेंद्रिये बैसतो | पाहावया ||२२||
दृष्टीने ढोबळे पाहावे | ज्ञानें सूक्ष्म वोळखावें |
प्रसंगानुसार जाणावें | सकळ कांही || २३ ||
ज्ञानेंप्रकाशें पाहे निरंजना | दृष्टीने ते पाहावेना |
पाहाता दृष्टी आणी मना | महदांतर || २४ ||
प्रकाश पडतां उजेड वाटला | परी तो भेद आणिक जाला |
सारिखेच वाटे मनाला | परी ते नव्हे || २५ ||
दीपप्रकाश मतिप्रकाश | दोहीमध्ये कोण विशेष |
विवेके सारांश | समजोनि घ्यावे || २६||
पर्वत कोरून स्छळ काढिले | तेथे नाना प्रकाशा ठेविलें |
आणि द्वार ओढून घेतले | मग बाहेरी प्रकाश कैचा || २७ ||
तेथे जरी ठेविले पुरुषा |तरी प्रकाश जातो दाहीदिशा |
द्वार आत्म्याच्या प्रकाशा | लागत नाही || २८ ||
तो प्रकाश आणि अंध:कार | दोन्ही येक ठाई विढार |
आसिले तरी निरंतर | गडद न नासे || २९ ||
बाह्यप्रकाश अंधार नासी | अंतर्प्रकाश अज्ञान नासी |
विवेके पाहातां दोहोसी | महदांतर || ३० ||
दीपप्रकाश वायोने जातो | आत्मप्रकाश वायोने तगतो |
दोहोतील विचार तो | विवेके वोळखावा || ३१ ||
आत्मयाचा प्रकाशभास | त्याचा तत्त्वासरिसा होतो नास |
म्हणोन सकळामध्यें विशेष | पूर्ण ब्रह्म || ३२ ||
इति श्री दासबोधे गुरुशिष्य संवादे प्रकाश निरूपण नाम समास प्रथम |